डेविड कैमरून जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में भारत आये और आते ही अमृतसर में माथा टेका था, तो 16% के भारतीय मूल के बर्तानियों की हनक तभी समझ आ गयी थी। विंस्ट्न चर्चिल ने भारत और टुकड़े होने की भविष्यवाणी की थी, क्योंकि ऐसी दंभी बातें करने वालों को खुद के किले की फिक्र नहीं रहती। आज चर्चिल की गद्दी पर एक भारतिय बैठेगा। इसे करारा जवाब कहते हैं।
सन् 1024 में ब्रिटिश शासन की स्थापना हुई थी, तब से आज तक ब्रिटिश रॉयल्टी कई बार कमजोर हुई और फिर मजबूत हुई। सन् 1570 में दक्षिण अमेरिका की खदानों से सोना लेकर 90 जहाजों का बेड़ा स्पेन जा रहा था जिसे फ्रांसिस ड्रेक नामक लुटेरे ने लूटकर ब्रिटेन की रानी को भेंट कर दिया। इसके इनाम में पहली बार किसी साधारण नस्ल के इंसान को ब्रिटिश रॉयल्टी ने रीगल टाइटल से नवाजा था। इस लूट ने ब्रिटेन को इतना शक्तिशाली बना दिया की उसकी हुकूमत पूरे विश्व में फैल गयी।
ठीक एक सदी के बाद ही ओलिवर क्रॉमवेल ने ब्रिटिश राजा चार्ल्स प्रथम को फांसी पर लटका दिया था। प्युर् ब्लडलाइन के दीवाने ब्रिटिश हुकूमत को मेगन मर्केल बहु के रूप स्वीकार न हुई। पिछले चुनाव में भी ऋषि सुनक को न चुनने की वजह भी रंगभेद रही। आखिर ब्रिटिश राज का सबसे कीमती नगीना भारत जिसको राज ने इतना लूटा की भारत के कई जिले आज भी भुखमरी और कुपोषण में यमन या इथियोपिआ से भी बत्तर हालत में है। आज उस नगीने को कोहिनूर का नूर होना है। जिन्हे लोकतंत्र की ताकत पे शक है, उनके लिए कमला हैरिस, बराक ओबामा, ऋषि सुनक किसी चमत्कार से कम नहीं लगे होंगे।
हालांकि, भारतियों को ऋषि सुनक यदि हिंदुस्तानी लग रहे हों तो उन्हे पाकिस्तान को अपना वतन मानना होगा। हाँ, ऋषि हमारे दामाद जरूर हैं पर उनकी राजनीति उसी दल की जिसकी विचारधारा में उपनिवेशवाद जायज है। जिसने ब्रिटेन को यूरोप यूनियन से तोड़कर वापिस कॉमन वेल्थ को जीवित करने का संकल्प साधा है। ऐसे में विश्व राजनीति में अश्वेत बरतानी प्रधानमंत्री की भूमिका बेहद कारगर होगी। सुनक को शपथ दिलाते वक़्त सम्राट चार्ल्स तृतीय को, 2011 कॉमनवेल्थ ग्मेस् का भारत दौरा याद जरूर आयेगा। मेरी कामना है की ऋषि अपने प्रथम भाषण में अपने पुरखे भगत सिंह को संबोधित करें। कुछ ऐसा हो जैसे अस्ट्रेलिया के अब्रोगिनी प्रधानमंत्री टोनी रुड ने किया था। क्राउन को उसके इतिहास के शर्मिंदा होना चाहिए।
जितेंद्र राजाराम