किसी नॉन इश्यू को स्टूपिड इश्यू और फिर मेजर कॉन्फ्लिक्ट के रूप में स्थापित करना भाजपा का पुराना हथकंडा है। काशी मथुरा बांकी है, इसी क्रम में राम जन्म भूमि से भी बड़ा मुद्दा बनेगा और उसको संभाल पाना किसी भी गैर भाजपाई दल के लिए असंभव हो जायेगा। दक्षिण में ऐसे किसी भी मुद्दे की तलाश में जुटी भाजपा को आखिर एक मुद्दा मिल गया। वनवासी या आदिवासी, कोई जरूरी मुद्दा नहीं है। लेकिन भाजपा को आदिवासियों के मध्य एक मुद्दा ऐसा मिल गया जिसकी वजह से वो आदिवासियों के मध्य एक प्रासंगिक होने लगी और अपने एजेंडे को भी कायम रखा।
भाजपा के लगभग सारे मुद्दे जमीनी आवश्यकताओं से परे और गरीबों व आम नागरिकों के लिए गैरजरूरी होते हैं। ऐसे मुद्दे जो राष्ट्रवादी भावनाओं व धार्मिक भावनाओं से उद्वेलित होते हों, जिसमें जन भावना केवल भाजपा के कहने मात्र से आहत होता हो, ऐसे मुद्दों को मनी, मीडिया और माफिया द्वारा समाज में फैलाना भाजपा का गजब का कृत है।
हर वो राज्य जहाँ, भाजपा की सरकार नहीं है, वहां एल जी या राज्यपाल लगातार सरकार की तौहीन कर रहे हैं। दक्षिण में केरल, पूर्व में बंगाल और उत्तर में दिल्ली राज्य इसके उदाहरण रह चुके हैं। तमिलनाडु में राज्यपाल एन रवि में हद ही पार कर दी। उन्होंने सरकार का दिया गया भाषण ही ठीक से नहीं पढ़ा। भारत गणराज्य के संविधान की रक्षा करने वाला पद धर्मनिर्मेक्ष और महिला सशक्तिकारण जैसे शब्दों से एतराज हुआ और उसे नियम के विरुद्ध जा कर विधानसभा में कहा ही नहीं। बार बार राज्यपाल तमिलनाडु को तमिझीगम कहते रहे, जब की राज्यपाल होने के लिए अपने शपथ में उन्होंने तमिलनाडु के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने का वचन दिया था।
फिलहाल इस कृत्य से तमिलनाडु की सरकार और विपक्ष दोनों नाराज हैं। फिलहाल ये मुद्दा तमिल नागरिकों के लिए भी हास्यास्पद है। फिलहाल इस मुद्दे से कोई राजनीतिक लाभ भाजपा को नहीं मिलेगा। ये फिलहाल का आश्वासन मैं इसलिए दे रहा हूं क्योंकि संघ जब जब अपने मुद्दे बनाने की कोशिश करता था तब तब कांग्रेस उसे मामूली समझ के नजरंदाज कर देती थी। आज कांग्रेस हाशिए पर है और संघ नेहरू काल के कांग्रेस से भी अधिक शक्तिशाली है।