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निर्भीक महत्वाकांक्षी शिक्षक

मानव मूल रूप से हिंसक और निर्दयी है। ये दुनिया तब से याद है जब रेडिओ में सुबह-सुबह सुना की भारत के प्रधानमंत्री रहे राजीव गाँधी को बम से उड़ा दिया गया है। मेरे मन ये डर भरता गया की जब प्रधानमंत्री ही महफ़ूज़ नहीं होता तो मेरे जैसों की क्या बिसात। इस डर ने ही निडर होने की ताक़त दी है।

उन दिनों हमारे गाँव के बहुत बड़े ज़मींदार बन्ने मियाँ रोज़ हमारे घर के सामने से गुजरते हुए अपने खेत ज़ाया करते थे। जब वो गुजरते तो रास्ते भर लोग उनके पैरों गिर-गिर उनको सलाम करते। मेरे मन में ये सवाल आता कि इतनी भी क्या हैसियत है की लोग पाँव गिरे जा रहे हैं। कॉलेज पहुँचने के बाद एक फ़िल्म देखी जिसमें ब्रिटेन का प्रधानमंत्री ब्रिटेन की रानी के सामने नौकरों की तरह सर झुकाए खड़ा था। ऐसा क्या तीर मारा है उस महारानी ने? सिर्फ़ एक परिवार में पैदा हुई है। रैंडम स्पर्म से ज़्यादा क्या है वो?

कम से कम मेरे देश का राष्ट्रपति जन्म के आधार पर तय नहीं होता है। मेरा देश ग़ुलाम नहीं है। आज के भारत से आज के ब्रिटेन की तुलना करते हुए उसी रात मैंने एक सिद्धांत लिखा था। “जो ग़ुलाम होते हैं वो सिर्फ़ ग़ुलाम ही पैदा कर सकते हैं और जो नेता होते हैं सिर्फ़ वही नेता पैदा करते हैं।” भगत सिंह कभी ब्रिटेन जैसे समाज में नहीं जन्म ले सकते। ब्रिटेन दुनिया को सिर्फ़ ग़ुलाम ही समझता रहा है क्योंकि वो खुद एक ग़ुलाम देश है। रामनाथ कोविंद जैसे राष्ट्रपति मेरे ज़हन में दुःख भर के गए हैं। बहोत दिनों बाद महामहिम द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश को ऐसा राष्ट्रपति मिला जिसका शरीर उसिकी रीढ़ की हड्डी के भरोसे खड़ा है। महामहिम मुर्मू ही सच में उस साम्राज्ञी का क़द रखती हैं जिनके सजदे में झुकते वक्त ग़ुलाम होने जैसी भावना नहीं आएगी।

ग़ुलामी, जिससे सतत लड़ना मेरा वजूद है। आज भी मैं विवश्ता से भरे आदेशात्मक कथनों से बैर रखता हूँ। जब भी कोई ऐसे आदेश देता है तो मेरे अंदर से एक ही आवाज़ आती है, “एक बार ही मारना है, अभी या कभी और। रोज़ रोज़ नहीं मारूँगा।” मैं अदना शिक्षक ही हूँ कोई बड़ी हैसियत नहीं है। महामहिम मुर्मू जैसा कोई, महेंद्र सिंह धोनी जैसा कोई, नेलसन मंडेला जैसा कोई अगर आदेश देगा रोम-रोम उस आदेश के पालन में लग जाएगा। लेकिन दोमुँहे अवसरवादी लोग जब आदेशात्मक समझाईश देते हैं तो तकलीफ़ होती है। जब से मैं शिक्षक हुआ हूँ, लोग मुझे समझाईश देते हैं की कठिन मुद्दों पर कठिन भाषा में पढ़ाने की कोशिश करोगे तो किसी को कुछ समझ नहीं आएगा। शिक्षक के रूप में आप फेल हो जाओगे। मेरे विडीओज़ देखकर मित्र कहते हैं की बहुत क्लिष्ट भाषा में बोलते हो। ऐसे में आपको कभी लाइक और शेयर नहीं मिलेगा। जाने क्यों, उनको ये लगता है मेरा उद्देश्य लाइक और शेयर बटोरने का है।मैंने जब पहली किताब लिखी तो सभी मित्रों ने कहा की बहुत कठिन भाषा में लिखी है इसलिए रोग नहीं पढ़ रहे हैं। मैं KG का शिक्षक नहीं हूँ, अगर मैं ही अपने छात्रों को प्रौढ़ और बुद्धिमान नहीं मानूँगा तो उनके साथ मेरा कोई भी व्यवहार अनुचित होगा। प्रसिद्ध पत्रकार लारा सत्रकियाँ कहती हैं कि हमारा सबसे बड़ा अपराध यह है की हमें हर कुछ आसानी से चाहिए। हमें कठिन चीजों से डर लगता है, इसलिए हम पर वो लोग हुकूमत करते हैं जो लोग कठिन चीजों को अपने फ़ायेदे के हिसाब से हमारे लिए आसान बनाते हैं। मैं गूढ़ विषयों में बात इसलिए करता हूँ क्योंकि मैं उन लोगों से मुख़ातिब ही नहीं होना चाहता जिन्हें सब कुछ आसानी से चाहिए। मुझे ग़ुलामों की दरकार ही नहीं है। यदि आप ग़ुलाम हैं तो आगे बढ़ें। यदि नेता हैं, तो जुड़े! शिक्षक की हैसियत से वादा करता हूँ की ये दुनिया हमें आसानी से मरते हुए नहीं देख पाएगी।


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