2014 के चुनावों के दौरान, हमारा एक व्हाट्स एप ग्रुप था, पंचायत, इस ग्रुप में सिर्फ मैं ही बमहं नहीं था। एक रोज, एक भट्ट नामक सदस्य नें मुझे संबोधित करते हुए कहा कि ये साले सेक्युलर नक्सली देश के असली दुश्मन हैं। लेकिन इन दुश्मनों को भी सुधरने का एक मौका देना चाहिए। यह कह कर मुझसे प्रेम पूर्वक शाम को फोन पर बात करने का समय मांगता है। जवानी की धौणक, मैंने उसे समय दे दिया।
शाम को बहमं भाई दारू मे धुत्त फोन करते हैं। बार बार संघ के संस्थापकों का हवाला देकर मुझे हिंदू संबोधित करते हुए, अपनी गिनती में शामिल करते हैं। जवाब में जब मैं किसी पुस्तक का हवाला देकर प्रति उत्तर देता हूँ, तो वो किताबों को तुरंत खारिज कर देते हैं। उनके मुताबिक ऐसी किताबे हिंदुओ को बदनाम करने के लिए लिखी जाती हैं। और ऐसी किताबें नहीं पढ़नी चाहिए। खीज कर उन्होंने फोन रख दिया। और ग्रुप पर लिखा की मेरे जैसे आतंकियों को सरे आम गोली मार देनी चाहिए। । धीरे धीरे वो ग्रुप, धमकी और गाली गलौज का अड्डा बन गया। जैसे देखते ही देखते पूरा देश ही अब गाली गलौज और धमकियों का अड्डा बन गया है।
अब अगर मैं कभी बहस करता भी हूँ तो बेहद छान के। तफ्तीश कर के कि यह व्यक्ति हिंसक नहीं होगा और तथ्य परख बात करेगा। आजकल ऐसे विरोधी विचार के लोग नहीं मिलते हैं। पर अगर मिल जाये, तो बहस का निष्कर्ष यही निकलता है कि बेकार किताबें पढ़ पढ़ के मैंने अपनी मति भ्रमित कर ली है। जितनी बार कोई ये आरोप लगाता है, मैं अपनी किताबों को देखकर हैरान होता हूँ। तलवार और बम की रास वार्ता में डूबे संघियों को किताबें क्यों ए के 47 जितनी खतरनाक लगती हैं?
शोध परख किताबों को लिखने का एक वैज्ञानिक तरीका होता हैं। उसमे अध्यन के स्रोतों को समग्रता से लिखना होता है। जिस लेखक के अध्यन का स्त्रोत वैज्ञानिक और प्रोढ़ होता है उस किताब को ही पढ़ने योग्य माना जाता है। मेरे किताबघर में ऐसी एक भी किताब नहीं है, जो इस विधि के इतर लिखी हो। मुझे ज्ञान संचय का ये तरीका बहुत विश्वसनीय लगता है। और मैं पूँजीवादी, धर्मिक विश्लेषण, समाजवादी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली किताबें ही पढ़ता हूँ। मैं कहानियाँ एवम साहित्य लगभग नहीं ही पढ़ता हूँ।
फिर भी संघी विचार के लोगों के लिए मैं आतंकवादी हूँ। पिछले, चार पाँच वर्षों में दुनियाभर में किताबों को बैन करने का चलन जोर पकड़ रहा है। जिस दुनिया में, बेचे और खरीदे गए एक एक मोबाइल फोन का डिजिटल रिकार्ड है, उस दुनिया में हथियार चोरी छुपे बिक रहें हैं और किताबों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। किताबों को बैन कर, हथियारों की होड़ में गरीबों से टैक्स वसूल कर कैसा राष्ट्र निर्माण हो रहा है?
आश्चर्य नहीं है, इनकी किताबों से नफरत भी धर्म के प्रति मेरी मृत निष्ठा की ताबूत पर एक और कील है।