top of page

हिंदुस्तान एक दिन में नहीं बना है।


आज के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे की सतही तफ्तीश बेमानी है। रोज रोज की अखबारी खबरों पर प्रतिक्रिया देना बौने विचार का द्दोतक हौ। मौजूद सत्ता मौजूदा प्रधानमंत्री, स्वयं सेवक संघ, और पूरी कार्यपालिका से भी अधिक शक्तिशाली है, भविष्य दर्शी है। इस सत्ता को जनता के बीच बहस के मुद्दे खड़े करना और उसपर अतिवाद पैदा करना बखूबी आता है। जनमानस से खेलने का हुनर और ताकत जितना भारत जी मौजूदा सत्ता के पास है, उतना किसी भी देश के पास नहीं है। ये 100 साल की कमाई है, कोई 7 साल में ये सब नहीं हुआ है।

मौलिक और दो टूक बात ये है कि हर एक वोटर जो भाजपा को वोट देता है वो हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को चरितार्थ करना चाहता है। वो मुसलमान और दलित को विकास विरोधी मानता है। भाजपा के 70% सत्तासीन नेताओं को भी भाजपा के मंसूबों की न समझ है, न ही फ़िक्र है। वो सिर्फ अपने जीवन काल मे राजयोग भोगना चाहते हैं। उठती लहर में सवार होना मद्धिम कद के नेताओं की नीयत होती है।

अखबारी मुद्दे जैसे विकास, विश्वगुरु, मेक इन इंडिया जैसे प्रयासों की विफलता; रोजगार की किल्लत पर आत्मनिर्भरता जैसे तंज सिर्फ उन लोगों के लिए खुराक हैं जो खुलकर हिंदू कट्टरता का किसी निजी मजबूरी वश समर्थन नहीं कर सकते। या उनका जो इस व्यस्था से लाभांवित हैं।

ऐसा नहीं है की ये वोटर नादान हैं। इनमे सोचने समझने लक्षण हैं। ये सच मे मानते है की हिंदू राष्ट्र के दूरगामी परिणाम सुखद होंगे। और ये भी की इसके निकटवर्ती परिणाम दुखदायी हैं। इसलिए वो लोग जो इस व्यवस्था से खुश हैं और वो जो दुखी है दोनो इसका समर्थन करते हैं। ये इस बात को नहीं समझ पा रहें हैं कि हिमालय की तराई और हिंदमहासागर् के बीच बसा विशाल भारत भूखंड दुनिया भर की राजनीतिक शक्तियों की लालच का केंद्र है। एकधुरीय सत्ता इस भूखंड में स्थापित ही नहीं हो सकती। यहाँ की जनता जब तक पूरी जिम्मेदारी से लोकतांत्रिक शासन को स्थापित नहीं करेगी, ये देश विदेशी हितों के लिए दुरपयोग होता रहेगा।

हिंदू प्रांत, मध्य एशिया के शेखों द्वारा रचित मुस्लिम प्रांतों का प्रति सिद्धांत है जिसमें मुट्ठी भर शेख बेहद अमीर हैं और दौलत के दम पर सभी देशों से संधि कर अपना दबदबा कायम रखते हैं। हिंदू राष्टृवाद में शेखों की भूमिका में होंगे मुट्ठी भर ब्राह्मण, एक थ्री टायर सिस्टम जिसमे राष्ट्र का मायने होगा यहाँ की अर्थव्यवस्था मे विदेशी ताकतों का अधिकार। 90% आबादी देह तोड़ मजदूरी और तिरस्कार के लिए अभिशप्त होगी।

ऐसा हो पाना असंभव नहीं है, अल्पकालिक ही सही पर संभव है। इस व्यवस्था में 5 ट्रिलियन का आंकडा छूने का दम भी है लेकिन 90 प्रतिशत आबादी की हड्डियाँ गला देने के बाद और लगभग सबकुछ बेच देने के बाद। तबतक दुनिया बहोत बदल जायेगी और शेखों की तरह यहाँ के ब्राह्मण भी पिछड़े और अज्ञानी हो जायेंगे।

अगर ये देश लोकतंत्र की अवधारणा पर चले, जो कि बहोत मुश्किल है, तो हम एक स्वायत्तता बना पाएंगे जिसमे विदेशी दखल कम होगा और सामाजिक परस्पर्ता बनी रहेगी। इसमे विकास दर कम होगी लेकिन समुचित होगी। हालाँकि, भारत एक आदर्श लोकतंत्र बन पाए ऐसा होना लगभग असंभव है। इसलिए इसे मिश्रित व्यवस्था ही बनाना चाहिए। जैसा की पुरखों ने तय किया था।


bottom of page