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लोकततंत्र को हाए है गोलवलकर की गाय




सच में, आज़ादी के पहले किसने सोचा होगा कि गोलवलकर की गाय एक दिन लोकतंत्र की हाय साबित होगी। काऊ बेल्ट का दक्षिणी भाग आदिवासियों की ज़मीन पर घुसबैठियों के शासन वाला राज्य मध्यप्रदेश है। १२ मई को यहाँ कि राजधानी भोपाल में गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस की परेड के लिए मशहूर लाल परेड ग्राउंड में अजब घटा। मौक़ा था गोरक्षक संकलप सम्मेलन के आयोजन का जिसे मुख्यमंत्री द्वारा रचा गया था। इसमें कोई पाँच सौ गोरक्षक एम्बुलेंस मामा ने मुफ़्त बाँटी। राज्य भर से आए क़रीब दो लाख गौरक्षक तीन की क़तार में ऐसे परेड ग्राउंड में घुस रहे थे जैसे सेना मार्च करती है। भीतर इंतज़ाम ऐसा था, जैसे किसी लश्कर ने राजधानी में छावनी डाली हो। दान किए गए एम्बुलेंस में गाय को रोटी खिलाते हुए भुखमरी और कुपोषण में दुनिया की राजधानी कहे जाने वाले देश के परधानसेवक की तस्वीर छपी हुई थी।

रोटी, गाए और गौरक्षक तीनों की तस्वीर ऐसी कि मनों संघ के इतिहास के आधार पर खुद चैट-जीपीटी ने बनाई हो। वो भी भागवत के मनोवैज्ञानिक संशय के आधार पर। संशय ये कि यदि मोदी मौजिक न चले तो चुनाव में हिंदुत्व तो चल ही जाए। क्योंकि राम को लाने वालों के विपक्ष में रामभक्त का भक्त चुनाव लड़ रहा है। फ़ोटो देखकर यक़ीन होता है कि प्रधानसेवक के गुरु भाई भागवत ने मोटाभाई से चुनाव की कमान छीन ली है। क्योंकि फ़ोटो में गाय ज़्यादा सुंदर लग रही है की गौरक्षक इसका अंदाज़ा आप तुरंत नहीं लगा पाएँगे।

कर्नाटक ने साबित कर दिया है कि बजरंग बली ही असली बाहुबली हैं और बजरंग दल एक हिंसक दल है। ऐसे में गौरक्षक संकलप सम्मेलन का ये प्रयोग आपदा में अवसर साबित होगा या आपातकाल में अमृतकाल इसका निर्णय होने की तैयारी तेज होना लाज़मी है। क्या रामभक्त के छिन्दवाड़ा वाले भक्त कर्नाटक सरकार की मदद से एआई और एमएल टूल्स का उपयोग हार्डवर्क वाले हॉर्वर्ड में पढ़े परिधान मंत्री से पहले लागू कर पाएँगे? क्या कर्नाटक की नवनिर्वचित सरकार पहले कैबिनेट में सभी वादे पूरे कर पाएगी? क्या दो इंसानों को जीप में ज़िंदा जला देने वाले गौरक्षकों को (अ) नैतिक सहमति देने वाले यानी दो लाख से अधिक गौरक्षक तैयार करने वाले मामा जी आदिवासियों को फुसला कर फिर से राज कर पाएँगे? क्या लगता है आपको?


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