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निराधार
“किस-किस से फ़रियाद करोगे, कौन रखेगा ध्यान?
पलक झपकते खो जाए गर काग़ज़ की पहचान!” आज ऑफ़िस से घर जाने में देर हो रही है, जेब में कैश नहीं है और टैक्सी वाला ऑनलाइन पेमेंट नहीं ले रहा है। वैसे बिल्डिंग के नीचे सब्ज़ी वाले से बात हो गयी है। सब्ज़ी भी ले लूँगी और टैक्सी को कैश भी, बस फोन की बैटरी बची रहे। 3% इज़ ऑल आई ऑल्वेज़ फ़ेल शॉर्ट आफ़।
सब्ज़ी वाले, टैक्सी वाले हो या मोची इन लोगों के पास हमेशा कैश रहता है। यहाँ एक-एक करके किश्त कटती है, और फिर इंतज़ार रहता है पगार का, ग़ज़ब है। हर साल इंक्रिमेंट लगता है, जितनी बार नौकरी बदली है लगभग तीन गुना सीटीसी बढ़ गयी है।

अफ़साने ही नहीं बनते, ना क़िस्सा गोई कोई करता,
इश्क़ और फ़रेब में अगर बहुत ज़्यादा फ़रक होता।।
आज ऑफ़िस से घर जाने में देर हो रही है, जेब में कैश नहीं है और टैक्सी वाला ऑनलाइन पेमेंट नहीं ले रहा है। वैसे बिल्डिंग के नीचे सब्ज़ी वाले से बात हो गयी है। सब्ज़ी भी ले लूँगी और टैक्सी को कैश भी, बस फोन की बैटरी बची रहे। 3% इज़ ऑल आई ऑल्वेज़ फ़ेल शॉर्ट आफ़।
सब्ज़ी वाले, टैक्सी वाले हो या मोची इन लोगों के पास हमेशा कैश रहता है। यहाँ एक-एक करके किश्त कटती है, और फिर इंतज़ार रहता है पगार का, ग़ज़ब है। हर साल इंक्रिमेंट लगता है, जितनी बार नौकरी बदली है लगभग तीन गुना सीटीसी बढ़ गयी है। शेयर मार्केट, गोल्ड, रियल इस्टेट, बिटक़ोईन सब कुछ में इन्वेस्टमेंट है, फिर भी दिमाग़ शांत नहीं रहता।
इस वीकेंड को पापा ने एक लड़के से मिलने को कहा है, पता नहीं कैसा होगा। मेरी तरह उसका भी कोई पास्ट होगा, लेकिन पहली मुलाक़ात ग़ज़ब की होगी। कभी-कभी लगता है, रूममेट से बात करूँ इस बारे में लेकिन वो मेरे पास्ट को इतने अच्छे से जानती है कि उसके सामने मैं किसी और लड़के की बात करूँगी तो पता नहीं मेरी क्या इमेज बनेगी उसके सामने। वैसे भी उसने डॉमिनेट करने में एक्स्पर्टीज़ पा ली है पेरेंट्स से लेकर अपने बॉयफ़्रेंड तक सब उसकी ग़ुलामी करते हैं, मुझे पता है उसकी राय।
“लेफ़्ट ले लो भइया, और कॉर्नर पे ही रोक दो”
1% बैटरी, क्या होगा जीवन का। ऐसा लग रहा है कि सासु माँ की अंतिम साँसें चल रहीं हैं और वसीहत पे सिग्नेचर अभी बाकी हैं। क्या टिपिकल गँवारों वाले ख़याल आते है यार दिमाग़ में। सब बॉलीवुड की करतूत है।
“भैया, लिस्ट वहट्सप पर भेज दी थी, आपने पैक कर दिया?” “ठीक है, अभी इनका कैश दे दो मैं मिला के पेमेंट कर दूँगी!”
पैकेट से तो नहीं लग रहा सब कुछ सही से तौला होगा साला। लेकिन इसको क्या बोलो, साला टाइम पे हेल्प कर देता है। मिल्क पैकेट से लेकर फ़ूड पार्सल तक सब कुछ सिर्फ़ एक स्माइल वाली थैंक यू के लिए। फिर जितना चालाकी से कमा ले। इसकी भी लाइफ़ सेट है, अभी शादी हुई है और वाइफ़ एक्स्पेक्ट कर रही है। साला, अपना ही नसीब कमा-कमा के मर जाने के लिए बना है। छोड़ ना यार ये सब क्यू सोचना, क्या कमी है? लाइफ़ में?
कीज़ कहाँ गयीं? यहीं तो रखी थी? लिफ़्ट के टॉप बॉर्डर पे। हड्ड है यार! ये बंदी फिर अपने लौंडे फ़्रेंड के साथ आयी है। 1% बैटरी है, विल शी पिक माई काल?
“हेलो बेटा, चाबी कहाँ है यार?” “हेलो॰॰॰!”
शिट आई सो मच न्यू ईंट। अब क्या? ये कमीने लौंडे साले हवस के पुजारी॰॰॰ लगे होंगे दोनो। अपना क्या, यहीं मरा लो सब। दिस इज टू मच यार, हमेशा का है।
चल बार! ख़ुद को भी चार्ज करेंगे और फोन को भी। ब्लडी लिफ़्ट, कभी तो सेम फ़्लोर पे मिला करो डार्लिंग। कमिंग अप फ़्रम ज़ीरो॰॰ मोबाइल बंद हो तो साला लाइफ़ स्लो मोशन में चलने लगती है। सीधे अपने फ़्लोर पे रुकेगी शायद॰॰॰ मेरी बात सुन ली क्या डार्लिंग? चलो कुछ तो हुआ मन का।
लिफ़्ट में बहुत सारे लोगों के बीच खड़े होना ऐसा लगता है, जैसे अपन नहा रहें हों और अचानक बहुत से लोग बाथरूम में आ जाएँ। लोगों की आँखें कहीं भी हों ध्यान उनका मेरे बदन पर ही होता है। मोबाइल रहता है तो ये सब इग्नोर हो जाता लेकिन अभी तो ऐसा लग रहा है की सबको धकेल के बाहर फेंक दूँ।
लिफ़्ट खुलते ही सब्ज़ी वाले भइया मिल गए, पार्टनर ने चाबी उनके पास ही छोड़ी थी। लिफ़्ट से बाहर भी नहीं निकली और फिर वापिस फ़्लैट पर आ गयी।
सेट लूज़॰॰॰ अकेले रहने का सबसे सुखद अनुभव, अगर मुझे कोई आज़ाद रहने के लिए छोड़ दे तो मैं बस एक बेडरूम और एक बड़े से बाथरूम में जीवन भर रह लूँ। बियर की बोतल, बाथ टब और मेरा मोबाइल॰॰॰ बस इतनी सी ही तो जन्नत है।
ये लो, मैडम नहीं आ रहीं, आई न्यू ईंट, जब भी सोचो की मैडम से कोई बात करनी है। मैडम ग़ायब, वो भी चैट में बता रहीं हैं।
चलो अकेले रहने का ही आनंद लें, आज कुछ स्पाइसी ऑर्डर कर देती हूँ। बियर तो काफ़ी है। नेटफ़्लिक्स मेरी जान! आज हम दोनों के बीच में कोई नहीं आएगा। कमान हार्वि स्पेक्टर! गेट ऑफ़ योर सूट्स, आई ऐम अलोन टुनाइट, लेट्स हैव फ़न।
कभी कभी लगता है, ख़ुद को शीशे में देखना और अपनी ही तारीफ़ करते रहना भी बोरिंग है। किस काम की ये जवानी जो किसी के काम ना आए। लेकिन फिर सोचती हूँ, मेरी जैसी खड़ूस के पास भी कौन आएगा। ऑफ़िस से घर तक अस्सी एक लौंडे तो होंगे जो फ़िदा हैं, लेकिन सालों की औक़ात की सामने आहें भी भर लें। मेरी नज़र में भी उनके लिए एक ही फ़रमान होता है कि अपने काम से काम रखो और दफ़ा हो जाओ।लेकिन करो क्या साले सब की लार टपकती है बस।
लेट्स गेट ऑफ़ दिस कंट्री यार, कोई ढंग का यूएस यूनिवर्सिटी मिले और मैं पीएचडी करूँ वहाँ जा के, एट लीस्ट लोग मुझे कम्प्लीट पैकेज तो समझें। यहाँ तो बस पोर्न स्टार ही हूँ सब के लिए।
बेल की आवाज़ ने ही ये जाता दिया की घर के बाहर एक पूरी दुनिया है। जहाँ अब सिर्फ़ बाज़ार ही रंगीले बचे हैं। सिर्फ़ बाज़ारों में रौनक़ रहती है। बाँकी, तो घर हो या ऑफ़िस, नीरस, मायूस लोग बहुत मिलते हैं। या व्यस्त होते हैं, या किसी अंधी दौड़ में भाग रहे होते हैं। किसी को कहीं नहीं जाना। फिर भी किसी लम्बे सफ़र में रहते हैं। हर किसी का मन टटोल लिया जाए तो बस सबको वही चाहिए जो इस वक़्त मेरे पास है।
फिर बजी बेल, रुक भाई कितनी बेल बजाएगा, खाने की डिलेवेरी वाला आया होगा। बेटा ऐसी हालत में डोर ओपन किया ना, तो बेहोश हो जाएगा, रुक जा।
यार दिमाग़ कभी बंद भी होता है? बियर भी, खाना भी, नेटफ़्लिक्स भी अब और क्या। नींद ही आ जाए।
***
इस वीकेंड बड़े काम हैं, ऑफ़िस आ जाओ तो लगता है कि आप किसी बहुत बड़े मशीन का एक छोटा सा पुर्ज़ा हो। और कोई है, जो पूरी मशीन का सारा काम इस अकेली पुर्ज़े से कराना चाहता है। ख़ुद का वजूद भी ग़ायब हो जाता है और फिर हर ईमेल रिप्लाई और हर कॉन्वर्सेशन में ये ध्यान रखना होता है कि एव्री वन इज हैप्पी, अप इन द चैन आफ़ कमांड। इससे तो बेहतर है किसी पोर्न मूवी में ही काम कर लो, कम से कम जो है, उसकी क़द्र तो होगी। यहाँ तो साला हर कोई अपने आप को गोवर्धन धारी समझता है। बस इस प्रोमोशन के बाद, सबेटिकल और सिर्फ़ यूएस, प्रिपरेशन चैन से।
लेकिन घर वाले तो मरे जा रहे हैं ना शादी के लिए। देखो क्या होता है उसके बाद। कर ही लेते हैं शादी भी, जो होगा निपटेंगे।
ये ईमेल क्या आया है? क्लाइंट पिच! नॉट अगेन, फ़्रेसर्श क्या मर गए हैं सब। चालू हलचल, लगा था आज कोई शांत दिन होगा लेकिन ऐसा सोचना ही क्यूँ।
वहटशप्प फ़्लड हो रहा है, चलो कॉन्फ़्रेन्स रूम। नया तमाशा तैयार है, अपन भी अपनी डफ़ली बजा लेते हैं। एक्सेल शीट, पावर पोईँट, ईमेल और अब ये वहटशप्प और क्या बाकी है? उँगली करने के लिए?
आइटनरि रेडी है, नेक्स्ट वीक इज पैक विथ ट्रैवल। फ़्रंट लाइन पिच है, माई टीम हैज़ फ़्लीट अव फ़्रेशेरस, सालों से काम लेना ही बहुत बड़ा काम है। ऊपर से उनकी पुअर ग्रूप चैट्स। इस बार बताती हूँ, सेक्सी बॉस कब सफोकेटिंग बॉस बनती है।
पीक द फ़ोन डैड! ऑफ़िस से ज़्यादा बात नहीं कर पाएँगे।
“हेलो, डैड! कैसे हो ?”
डैड हमेशा लम्बी बात के लिए रेडी रहते हैं। इस बार तो मैं ने फ़ोन किया है। इम्पोर्टेंट मीटिंग में भी होंगे ना तो भी उठ गए होंगे। आई लव माई डैड।
“अच्छा ज़्यादा टाइम नहीं है डैड, सुनो आप उस बंदे को बोल दो एरोसिटी में मिलेगा मोर्निंग 10, संडे। मेरी फ़्लाइट है 1 पीएम, फिर पूरा वीक मैं ट्रैवल कर रहीं हूँ।”
पता था, डैडी का पुराण। लम्बी-लम्बी आदर्शवादी बातों का समरी ये है कि हम लड़की वाले हैं, हमें ज़्यादा डेस्प्रेट होना चाहिए। और ना जाने क्या क्या।
“डैडी, आई एम डूइंग, व्हाट यू वॉंट, अब इतना तो प्लीज़ ऐक्सेप्ट करो ना?”
आई नो डैड को कैसे मनाना है। मैं बहुत अत्याचार करती हूँ, अपनी फ़ैमिली पर।
“चलो डैडी, टीम लंच है, मुझे जाना है। बाय”
मॉम और डैड साथ नहीं रहते। दोनो की अपनी प्रायोरिटीज़ हैं। साथ रह के भी झगड़ा करने से अच्छा है, अलग रहना। कोई डिवॉर्स नहीं हुआ बस अलग हो गए। मॉम कैसी हैं, मैं कह नहीं सकती, बस डैड से कनेक्टेड हूँ। ऐसा क्यूँ है इसका भी कोई कारण नहीं है। जबसे कॉलेज आ गयी तब से दोनो अलग रहने लगे, मॉम को फ़ोन करना मतलब या तो नो रेस्पॉन्स या तो दुनिया भर का ज्ञान। डैड को सब बता के रो लेना भी अच्छा लगता है। दोनो में कौन ग़लत है, ये सोचने का टाइम ही नहीं मिला। पहले बॉयफ़्रेंड था तो दुनिया भर की मौज की अब नहीं है तो डैड के हिस्से की कहानी सुन ली है। लेकिन जो सच है, वो ये कि एक तरफ़ा कुछ नहीं होता। अगर दोनों में से एक ही ग़लत होता, तो ये दोनों बीस साल एक साथ नहीं रहते। हम दो बच्चे हैं उनकी दुनिया में। दोनों अपने करियर में बेहद सफल हैं। दुनिया और ख़ासकर हमारे रिश्तेदार उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। कभी-कभी समझ आता है कि पापा और मॉम साथ क्यूँ नहीं रहते। ठीक उसी वजह से जिसकी वजह से कई जन्मों तक साथ निभाने की शायरी लिखने वाला मेरा दीवाना आज दुनिया के दूसरे कोने में अपनी वाइफ़ के साथ मस्त है। मैं अपने आप को हुस्न की परी समझती हूँ, और हूँ भी यार! मैं सबकी इमोशंस की क़द्र भी करती हूँ, लेकिन मैं कभी एक्स्प्रेस नहीं कर पाती। मुझे ख़ुद को एक्स्प्रेस करना बोरिंग लगता है। और जितना कोई मुझे मजबूर करता है, उतना ही मेरा दिमाग़ और ज़िद्दी होता जाता है। मैं एक ढीठ बिगड़ैल इंसान हूँ। जिसे दुनिया की क़द्र तो है, लेकिन ख़ुद से ज़्यादा नहीं।
हालाँकि मेरी रूम पार्टनर मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचती। लेकिन वो है तो रूम पार्टनर, उसको कौन सा मेरे साथ जीवन बिताना है। जो मेरे बारे में वो अपनी कोई गहरी राय व्यक्त करे। एक बार हम दोनों देर रात तक पी रहे थे, तब उसने मेरे बारे में जो कहा था वो ख़ूबसूरत था। वो बातें सही भी लगती हैं, लेकिन अगर उसने जो कहा वो सही है? तो फिर मेरा ब्रेकअप क्यूँ हुआ? फिर मॉम-डैड अलग क्यूँ हैं? ये सारे सवाल जब तक दफ़्न रहे तब तक ही बेहतर हैं। लेकिन जैसे-जैसे उस बंदे से मिलने का समय पास आ रहा है, मुझे ये सभी ख़याल छोड़ ही नहीं रहे।
मोबाइल क्या ग़ज़ब की चीज़ है, आज हफ़्ते भर का ट्रैवल प्लान मोबाइल पे बना डाला, फ़्लाइट, होटेल्ज़, खाने का मेन्यू, ट्रैवल की ज़रूरत का सामान और कपड़े सब कुछ मोबाइल से ख़रीद लिया है। ना बैंक गयी, ना जेब से एक रुपया निकाला, ना दुकान ना कोई एजेन्सी। एक ज़माना था इन सब कामों के लिए भी अलग से वक़्त निकलना पड़ता था। सोचो अगर मोबाइल बंद हो जाए तो क्या हो? मेरे तो सभी आई कार्ड्स भी मोबाइल पर ही हैं। तकनीकी ने ग़ज़ब की दुनिया गढ़ दी है, जो कोसों दूर हैं उनसे फ़ेस टू फ़ेस बात हो जाती है। जो साथ बैठा है वो अजनबी से भी अजनबी है।
आज का दिन बेहद बिजी था, चेंज कर के जिम जाऊँगी। मेंटल थकान को बॉडी की थकान से मैच कर लो और फिर नहा के दो पेग लगा लो, रात सुकून से कटती है। कल का दिन फिर किसी नयी खदान खोदने जैसा होगा। उम्मीद से लबालब और समय से तंग, पता नहीं ख़ुद के लिए क्या करेंगे कल? हाँ लेकिन जिस मशीन का मैं पुर्ज़ा हूँ, उसकी पूँजी में ग़ज़ब का इज़ाफ़ा हो जाएगा।
***
सच कहूँ तो ख़ुशी भी है, लेकिन बेचैनी ज़्यादा है। वैसे तो बंदा आस्ट्रेलिया में सैटल है। फ़ैमिली इंडिया में हैं, लेकिन शादी के बाद कहीं भी रहने की बात पापा ने कर ली है। मेरे करीयर पे कोई पाबन्दी भी नहीं रहनी और बंदे का प्रफ़ेशन भी साउंड है, फ़ोटो में भी इनेटलेक्टुअल लगता है। अभी फोन पे टेक्स्ट एक्स्चेंज हुआ है। ही डिड नाट साउंड डेसपो, इस लिए भी सही लग रहा है। पास्ट से नर्वस हूँ, अगर हिस्ट्री से उसको परेशानी हुई तो आई विल रिफ़्यूज़ माय सेल्फ़। छुपाना और फिर बाद में बताना कुछ अलग ही दोग़लापन होगा। एक्स की भी याद आ रही है, वो नक़ली इंसान नहीं था। बस थोड़ा मुझे और झेल लेता तो मैं ख़ुद ही मोम सी पिघल जाती। इससे पहले की एहसास नर्म होते, रिश्ते की आँच ठंडी पड़ गयी। इस तेज़ ज़िंदगी से और क्या उम्मीद करें, अब तो हर रिलेशन शेयर मार्केट के ट्राजंक्शन जैसा है। इससे पहले की घाटा हो, बेच दो। और ज़रा भी मुनाफ़ा लगे तो ख़रीद लो। लाइफ़ बुल और बेर जैसे चल रही हैं। धड़कने सेक्स से कम सेन्सेक्स से ज़्यादा तेज़ होती है।
एरोसिटी स्टारबक्स में एंटर हुई हूँ, वो पहले से आ चुका है। इससे पहले की फ़ोन लगाती वो ख़ुद ही आ गया। चलो फ़ोटो और रीऐलिटी मैच हो रही है। बंदा मेरे से भी लम्बा है। फ़िटनेस भी तारीफ़ करने लायक़ है। लेडी के लिए कुर्सी खींच दी है, वाह स्टेटमैनशिप भी है।
कुछ बेतुके से सवाल और स्लैम बुक वाली बातें॰॰॰ कट द क्रैप यार। मैं ने पूछा कि मुझे शार्टलिस्ट किसने किया? उसने जवाब दिया कि कोई लिस्ट नहीं है। ये जवाब भले ही झूठ हो, वैसे तो झूठ ही होगा, लेकिन दिल रखने का अन्दाज़ बढ़िया था। ख़ुद के बारे में बताया, प्रफ़ेशन, पोजेसन और प्रजेक्शन सब कुछ। एक ही लाइफ़ है, साइलेंट दर्शक टाइप से नहीं जीना है। दम भर के खेलना है सारे खेल, हारना भी है और जीतना भी। कोई मेडल नहीं चाहिए, बस इतना की जी भर के खेलो और फ़ना हो जाओ। अब तो इस बात का भी फ़र्क़ नहीं पड़ता की उसे क्या फ़र्क़ पड़ेगा। उसका ये सवाल की फ़्यूचर प्लानिंग क्या है, मुझे अच्छा लगा। मैं ने कहा जवाब टेक्स्ट कर दूँगी, ठीक लगे तो रिप्लाई करना नहीं तो डिसीजन देने का साइलेंट तरीक़ा ही सही रहेगा। जब मेरी फ़्लाइट का टाइम हुआ तो एयरपोर्ट तक ड्रॉप करने आया। साइन ऑफ़ करते वक़्त उसके चेहरे पे जो मायूसी भरी उम्दा मुस्कान थी, वो मेरे जेहन में बस गयी है। लेकिन इस बार यूँ ही नहीं होगा! सब कुछ, फिर कोई दिल तोड़ जाए इतनी हैसियत किसी को नहीं देनी है। सोचा था, फ़्लाइट में कुछ काम कर लूँगी, लेकिन थोड़ी देर पहले हुई मुलाक़ात शहद की तरह होठों से चिपकी हुई है। हर बार रह-रह कर होठों में ज़ुबान फेरती हूँ। मिठास भीतर तक तरंग भेज देती है। ऐसा हो सकता है क्या? कल तक जो अपने ब्रेकअप की वजह से ख़ुद से भी अकड़ के बात करती थी, आज उसे बार्बी डॉल की उमर वाला प्यार महसूस हो रहा है। फ़ोन को फ़्लाइट मोड पर करने से पहले पापा का फ़ोन आ रहा था, मैं ने जानकार नहीं उठाया। मुझे इतनी जल्दी कोई जवाब नहीं देना है, किसी को नहीं, ख़ुद को भी नहीं।
जब तक जहाज़ आसमान में होता है, मोबाइल आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आप अपनी कल्पनाओं में बादलों के ऊपर, बिना पंखों को थकाए, शान से मँडरा सकते हो। सफ़ेद बादलों के बीच जैसी चाहो आकृतियाँ बनाओ या अंदर लगे उपकरणों को निहारते हुए उनसे सवाल जवाब करो। कई लोग तो नो नेटवर्क ज़ोन में भी अपना मोबाइल निहारते रहते हैं। ऐसा क्या है इस डिब्बे में? जो दुनिया भर में नहीं है? वैसे इसके बिना आज का जीवन सम्भव भी नहीं है। क्रेडिट कार्ड से लेकर आई कार्ड तक सब कुछ मोबाइल में है। इस हफ़्ते भर मैं इंडिया के चारों कोने का सफ़र कर लूँगी, वो भी बिना किसी परेशानी के। इन सारी टिकट्स, होटेल्ज़ और डाइनिंग का इंतजाम इस मोबाइल ने ही किया है।
आधी दुनिया मोबाइल की दीवानी है, और बाकी की आधी दुनिया इससे दूर रहने की सलाह देकर कमाई कर रही है। सच है, सफलता वो क्षण हैं, जब आधी दुनिया आपकी मुरीद हो और बाकी की दुनिया आपको गालियाँ दे रही हो। आपकी, अकेली सफलता से पूरी दुनिया की दुकान चाल पड़ती है। लोग मोबाइल के रेडीएशन के ख़िलाफ़ मुहीम चला रहे हैं, कुछ लोग मोबाइल को राइट-टू-प्राइवसी का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं। उनके मुताबिक मोबाइल फ़ोन से हम जो भी करते हैं वो किसी ना किसी तीसरे व्यक्ति या कम्पनी की निगरानी में होता है। ओनेस्ट्ली, प्राइवसी इस ए मिथ। ये ना कभी थी, और ना कभी किसी के पास होगी। और किसके पास फ़ुर्सत है, थकी हुई दुनिया के बोरिंग सेक्स चैट पढ़ने की। सेक्स चैट और बैंकिंग डिटेल्ज़ के अलावा दुनिया में कुछ और सीक्रेट रख के भी क्या कर लोगे? मेरे लिए तो, बैंकिंग सेफ़ रहे बाकी और कोई ज़रूरत नहीं है। सेक्स चैट का ख़याल आते ही मन फिर से एरोसिटी स्टारबक्स घूम के आ गया। क्या है यार ये, मैं इतनी नादान कैसे हो सकती हूँ? इतनी आसानी से पिघल जाती हूँ? और फिर लोगों की दोगले बाज़ी पूरी लाइफ़ मनहूस कर जाती है। मुझे इस बार बहुत ख़याल रखना है। कोई बेवक़ूफ़ी नहीं, दिमाग़ लगेगा, दिल का काम हो चुका है, ईट इज फ़क्कड ऑल्रेडी। ***
“एच॰आर का ईमेल है, आधार और पेनकार्ड लिंक करना है। इस बार आईटी रिटर्न फ़ाइलिंग में भी कुछ पर्सनल डेटा चाहिए उसको।” आज सुबह से ही इंटर्नस पर सनकी हुई है मेरी। इन लोगों की मिस हैंडलिंग से सारी मीटिंग्स लेट हो रही हैं। वो भी इम्मटीरीयल सी मीटिंग्स। ऊपर से ये कोई नई शर्त आई है, गवर्न्मेंट कि तरफ़ से।
“हाँ यार, नहीं किया, और अभी मैं हूँ भी नहीं ऑफ़िस में तो फिर देख लो यार प्लीज़” मैं ने थोड़ा नरम होके रिक्वेस्ट में भी कह दिया।
यार ये ठीक है कि इतने दिन बाद कोई गवर्न्मेंट आयी है, जो काम कर रही है, लेकिन यार हम लोग भी काम ही कर रहे हैं। क्या ये आधार, पेनकार्ड, इनकम टेक्स लोचा है यार। पहले ब्लैक मनी और करप्शन पे फ़ोकस करो ना यार क्यूँ हमने ही गुड सिटिज़ेन की ट्रेनिंग देने के लिए वोट दिया है क्या? छोड़ो यार, कौन सा मैं ने वोट दिया था। लेट्स फ़ोकस॰॰॰ कहाँ थी मैं ।
फ़ोन से तो मैं तंग आ चुकी हूँ, अब किसका मैसेज है? ओह, सैलरी आ गयी, चलो कोई तो खुश ख़बर हुई। ये कौन है? वाटशप्प पे भी साले ऐसे लाइन मारते हैं, जैसे चैट में ही ऑर्गैज़म मिल जाएगा इनको। वेट, ये तो साला ऐरोसिटी वाला है।
“नरम, नमकीन, सुर्ख़ -
तेरी सख़्सियत भी तेरे होंठ जैसी है!!
ईंट वज़ नाइस टू मीट यू!”
फक, ये तो पोयट्री लिखता है भाई! कमाल है! साले जितने मिले सब ग़ालिब की औलाद मिले। अब इनसे न हो मोहब्बत तो क्या मैथ टीचर से होगी। रिप्लाई करूँ? ब्लू टिक तो दिख ही गया है। छोड़ ना! तरसने दे साले को।
बेटा फ़ोकस कर ले काम पे नहीं तो लग जाएगी तेरी, वैसे भी कम नहीं मरी पड़ी है। किसको कॉल लगाना था?? हाँ, कैब बुक करो पहले!
“यस, आई एम ऑन माई वे॰॰॰” साला क्लाइंट का ही फ़ोन आ गया। “यस, आई विल बी ऑन टाइम!”
जब मोहब्बत चढ़ रही होती है, तो ट्रैफ़िक वाला सफ़र भी रोमांटिक लगता है। उसके मैसेज को बार-बार देख कर बिना रिप्लाई किए फ़ोन लॉक कर देना भी अच्छा लगता है। टिक ब्लू है, मूड रेड हो रहा होगा लौंडे का!
बड़े पेंच हैं परवानों की पतंगबाज़ी में!
मगर इश्क़ की आग है?
लगती है, बुझती है, सुलगती है!
भेज दूँ? साले को करेंट तो दे ही देती हूँ। वेट, क्लाइंट के यहाँ पहुँच के भेजती हूँ, नहीं तो ब्लू टिक देख-देख के मेरा दिमाग़ ख़राब होगा। इफ़ इन केस ही डजेंट रिप्लाई सून इनफ़॰॰॰
आज कल ऑफ़िस रिसेप्शन साला ब्राथल एंट्री गेट बन गया है। व्हट ए स्लट शी लुक्स लाइक! थोड़ा लिपस्टिक ही ढंग से लगा लेती बहन॰॰॰
“हैलो, आई एम हियर फ़ोर आ मीटिंग विद द एमडी।” मैं ने अपना कार्ड रिसेप्शन में बैठी बंदी को आगे बढ़ा दिया।
उसकी आँखों में भी वही भाव थे जैसी मेरी आँखों में, जैसे हम दोनों एक दूसरे को कह रहें हों “स्लट!” अंदर जाते-जाते मैं ने अपना ही भाव चेंज किया, और मन में कहा “बिच!”
मीटिंग के बीच में फ़ोन बीप करने लगा, साइलेंट किया तो वायब्रेशन भी डिस्टर्ब कर रहा था। दीवाने का चैट रिप्लाई आ रहा है, वाह! थैंक्स टू! इस्केप ब्लू टिक नर्वस्नेस! उफ़्फ़ ये मीटिंग, मुझे पढ़ना है साले ने क्या भेजा है, लेकिन!!
“यस, इट इज़ प्रॉसेस ड्रिवेन। वी आर द ओनली इंडीयन कम्पनी जो डिज़ाइन थिंकिंग को ऐक्चूअली प्रैक्टिस करती है। ये सारी प्रॉसेसेज़ आपके कस्टमर फ़र्स्ट अप्रोच को ध्यान में रख के बनाई गयी हैं।”
ओनेस्टली ये सब भतोलबाजी है, और मैं इसमें माहिर भी हूँ। लेकिन फ़िलहाल मुझे लौंडे का रिप्लाई पढ़ना है, अभी! दिस सीम्स रिवर्स ब्लू टिक नर्वस सिंड्रोम। लगता हैं, मैं अपने डिप्रेशन से बाहर आ रहीं हूँ, और ये बंदा इसकी वजह बन रहा है। शायद! चल बे दिलफेंक, तेरी इसी सुपर पॉज़िटिव एटिट्यूड ने ही तेरी ले रखी है।
“वोह! तुम भी?
ग़ज़ब है, क्या इरादा है?
जवाब गिग करूँ? वैसे जुगलबंदी मुझे पसंद है,
लेकिन बहुत देर तक नहीं! बट यार,
आई लाइक्ट ईंट वेरी मच डेट यू लाइक पोयट्री!”
भक साला, ज्ञान! इससे बेहतर तो तू गिग ही करता। पूरे मूड की!! छोड़, साले को बाद में छेड़ेंगे। लेट मी पे ऑल बिल्ज़,
हाँ, नमक हूँ मैं ।
ज़ायक़ा भी हूँ, बेस्वाद भी।
और ये इस पर निर्भर है
की मुझे घुलना क़िस्में है!
या कितना हो मेरा इस्तेमाल!! - गुड नाइट
ये लिख कर मैं ने फ़ोन बंद कर दिया और ख़ुद से सो जाने का ढोंग करने लगी। मुझे अभी कोई रिप्लाई नहीं चाहिए, कैसा भी रिप्लाई हो। ये बिचिंग नहीं है, मैं सच में नहीं चाहती कि फिर से मुझे कोई हर्ट करे, प्यार मिले ना मिले लेकिन धोका ना मिले। इस बार ऐसा हुआ तो ख़ुद से नफ़रत हो जाएगी, हमेशा के लिए।
***
सुबह मीठी आलस के साथ हुई है। ख़ुद को देर तक आईने में घूरते रहना मेरा बचपन का शौक़ है। आज बड़े दिन बाद मेरी ज़िंदगी ने मुझे मेरा बचपन जीने का मौक़ा दिया है। मुझे यक़ीन नहीं हो रहा कि ये दौर मेरी ज़िंदगी में फिर से आया है। पोयट्री मैं भूल चुकी थी, ग़ज़लें बेकार लगने लगी थी। ये सब कुछ मुझे एंटर्टेन्मेंट सर्विस का प्रोफ़िट मॉडल लगने लगा है। लेकिन आज फिरसे, मन में शब्द गुदगुदा रहे हैं, जैसे ककहरे घट के सिर्फ़ सरगम रह गए हों, जैसे नौकरी, मीटिंग, टीम, टार्गेट ये सारी शब्दावली ग़ायब हो गयी हो। और बची हों, तो बस रुबाइयाँ। लेकिन मुझे इस ख़याल से ग़ुस्सा आता है। ख़ुशी की आहट होते ही उसके एक दिन चले जाने का डर पहले ही घर में आ जाता है। लोग कैसे भी हों, जब वो अजनबी नहीं रह जाते, तो बदलते जाते हैं। हर रोज़ यही लगता है कि वो कल अजनबी ही थे तो ही अच्छे थे। और धीरे-धीरे वो एक दिन अपना असली चेहरा लेकर सामने आ जाते हैं। वो चेहरा जो मेरे अंदर की रुबाइयों को टीम, टार्गेट और प्रोफ़िट में बदल देता है। बल्कि यूँ कहूँ, कि मेरे अंदर ही मैं एक बार और मर जाती हूँ। दुनिया मुझे ज़िंदा देखती है, मेरी ज़िंदादिली नहीं देखती। क्यूँकि वो तो मेरी ही कई लाशों के बोझ के नीचे दफ़्न है। आज जैसे पुनर्जन्म हुआ है, ये इंसान मुझे क्यूँ इतना अच्छा लग रहा है? इतना कि फिर अतीत को भूलकर आगे बढ़ना चाहती हूँ?
आज दुनिया देर से शुरू होगी, क्यूँ की आज की रानी मैं हूँ। और मुझे अभी नहीं करना है कोई काम। आज की सुबह मुझे खिड़की से भी नहीं देखनी है, घड़ी से भी नहीं। आज मेरा कमरा मेरी सल्तनत है। जिसमें मेरा हुक्म चलता है। और मेरा हुक्म है कि फ़ोन बंद हो जाए और दुनिया इस ब्रम्हाण्ड के किसी और कोने में जा बसे।
***
फ़ाइनली, सारी तसल्ली के बाद भी आज फट रही है। शादी साली चीज़ ही ऐसी है। जितनों की हो गयी है सब ने यही बोला है, “शादी ओन्ली एड्स टु द लाईबिलिटी साइड ओफ़ द वर्क-लाइफ़ बैलेन्सशीट।”
फ़क दिस, ऐसे ख़यालों की अभी ज़रूरत नहीं हैं। सब वेरिफ़ाई किया है। सब कुछ साफ़ साफ़ बता भी दिया है। हर किसी का पास्ट होता है, मेरा भी था। इस बंदे का भी था। बता दिया है कि आई एम नॉट वर्जिन। वो भी नहीं है। इस ज़माने में इस उमर तक किसका बचता है साला। शादी भी कितनी डेट्स और नाइट आऊटस के बाद हो रही है। एक दूसरे को ख़ूब जानते हैं। और फिर दोनों की उमर है सेटल होने की, कब तक मुँह मारते फिरेंगे।
कितने फ़ंक्शन किए हैं, कितनी पब्लिक स्पीकिंग की है, लेकिन साला अपनी ही शादी के स्टेज में कुछ अलग ही फटी रहती है। बंदा हैंडसम लग रहा है भई। अपन भी तसल्ली से सज लिए हैं। जितनी चूल थी शादी की सब मिटा ली है। हनीमून भी सेट है, मौरिशियस में, बंदे के जेब से कटेगा। टू मच इक्सायटेड! फ़ोटोग्राफ़ी उबाऊ है साला। दांत निकाल के हंसते-हंसते भी बोर हो गयी मैं । बंदे के लौंडे दोस्तों की नज़र के हिसाब से तो मैं कातिल ही लग रही हूँ। बंदियों ने भी तारीफ़ कर ही दी है, और वैसे भी, आई नो मायसेल्फ़! फक यू दुनिया!
अभी तक सब ठीक ठाक है, मंडप में अजीब सी घुटन हो रही है। पंडित जो क़समें खिला रहा है, वो प्रेक्टिकल नहीं है। लेकिन निभाने टाइप का फ़ील आ रहा है। ये प्रॉसेस ग़ज़ब है, इस बंदे के साथ इतना साथ रही हूँ, लेकिन आज इस शादी में उसकी एक-एक छुअन नयी लग रही है। हथेली में हथेली रख कर अग्नि में जल देना। गाँठ कपड़ों की बंधी है, लेकिन वाक़ई ऐसा लग रहा है, जैसे जिस्म बाँधे गए हैं। या फिर कोई आत्मा टाइप होती होगी उसको ही। ये सात जनम एक साथ टाइप की शादी मेरी मुराद थी। आज वो मुराद बीत रही है, और जो सबसे बड़ी टेंशन थी कि क्या मैं अपनी शादी को वैसे ही जी पाऊँगी जैसा मैं ने ख़यालों में जिया है। बचपन के गुड्डे-गुड़िया के खेल जैसे, अधरंग, अल्लहड उठती जवानी की पोयम जैसे? लेकिन क्या ख़ूब क़िस्मत पलटी, आज मैं जी रही हूँ, वो सब कुछ जो मैं ने सोचा था।
जब वो सिंदूर भर रहे थे, उस वक्त मुझे यूँ लगा जैसे वाक़ई मैं सर से आधी फट गयी हूँ और वो आधे मेरे हो गए हैं। मंगलसूत्र की रसम आई तो उसकी आधी मैं हो गयी।
झीने से धागे ने,
एक बूँद रंग से
दो अंगुल के पल्लू में
दी-दो सरफूँदी गाँठ
और अग्नि के साथ
मैं तुम अब, हम हो गए
सदा के लिए!
***
रस्मों ने रिश्तों को ज़िंदा रखा है, नहीं तो लिव इन और वन नाइट आउट ने तो शरीर को पूरा यूज़ कर लिया। ग़लत-सही जैसा ऐब नहीं निकाल रही हूँ, बस ये कह रही हूँ कि थोड़ी देर पहले एक घर को हमेशा के लिए छोड़ देने का दुःख छाती फाड़ रहा था। और अभी नए घर में ग्रह प्रवेश की ये रस्म दीवाना कर रही है। मुझे मेरे रंगे हुए पैर इतने सुंदर लग रहे हैं कि बयान नहीं होगा। ख़यालों में हज़ार दफ़े ख़ुद को दुल्हन के लिबास में देखा है, लेकिन दहलीज़ में अपने पैरों के शृंगार को देख कर मैं ख़ुद हैरान हूँ। चावल के दानों सा मैं बिखर गयीं हूँ इस घर की फ़र्श पर। ये कैसा खयाल है, कहीं से निकल कर कहीं और रोपी जा रहीं हूँ।शायद! मीलों दूर किसी पौधे में मैं फल की तरह उगी थी, आज वो पौधे दरख़्त बन गए हैं। कुछ दिनों से एक सूखे बीज जितना ही बची रह गयी थी मैं , आज जैसे कोई सींच रहा है मेरे जिस्म को।
एक पीढ़े में हम-दोनों को खड़ा होना है, रस्म है कोई। घर के सभी बुज़ुर्ग, इस बाग़ान के सभी दरख़्त, हम नव-कोपल पौधों का अपने परिवार में स्वागत कर रहे हैं। ये रस्म का सार ये है कि हम दोनों अभी तक आधे-आधे थे और आज पूरे हुए हैं। इसलिए आज हम इस ख़ानदान के अधिकारिक अग्रज कहलाये जाएँगे।
ऐसा महसूस भी हो रहा है, मैं आज पूरी हो रहीं हूँ।
***
ये आलीशान एयरपोर्ट, बेहद खूबसूरत टाइलिंग, इतनी भीमकाय इमारत। सब कुछ ऐसा जैसे एक दुनिया से दूसरी दुनिया में यात्रा करने का बंदोबस्त हो। हो भी क्यूँ न, हम तो जा रहें हैं मौरिशश!
बीती दो रातों में क्या-क्या हुआ है, उसकी खुमारी मेरे चेहरे पर है। हाथों की चूड़ियों और गले में सूत्र देख कर कोई भी समझ लेगा, बीती रातों में कितनी होली खेली हैं हमने। लेकिन अब तो तूफ़ान मचाने जा रहे हैं। ये बंदा सही है यार! लाइफ़ सेट है। समझदार है, प्लान लाइफ़ जीने वाला है। चिपकू नहीं है, स्पेस देता है। सब कुछ प्लान किया है बंदे ने। इसके डॉक्युमेंटेशन, बेड रूम सेटिंग और पेरेंट्स के साथ इसका रिलेशन सब कुछ प्रभावित करता है। पोयट तो साला है ही, रोमांटिक भी है और हबशी भी। हबशी तो मैं भी हूँ, लेकिन साले को तरसाने का मज़ा ही कुछ और है।
देख साले की प्रिपरेशन, वीज़ा, पासपोर्ट, टिकट्स, आई डी कार्ड्स, हर चीज़ की कापी है। हर चीज़ सलीके से रखी है। इतनी ज़बरदस्त पैकिंग तो मैं भी नहीं करती। इतनी प्लानिंग और इतनी शिदियूल वाइज़ प्लानिंग। सेट है भई सब। गले लगा के चूम लेती हूँ साले को, प्यार आ रहा है इसपर। इतनी ख़ुशी मुझे कभी नहीं हुई।
ये साली काउंटर वाली हेरोइन, आधार कार्ड देख ना, बंदे को क्या घूर रही है? मेरा आधार कार्ड तो ऐसे देख रही थी, जैसे कोई बेकार का काम कर रही हो। स्लट साली!
मैं ने भी रोमैंटिक्ली अपने बंदे को किस कर लिया सब के सामने। जस्ट टू क्लीयर, आई एम द लाइयनेस होल्डर एंड ही इस माई कब, फक ऑफ़ दुनिया। फ़्लाइट के रूटीन वाले चूतियापे चलते रहे, अपन दोनों अपने मौरिशश वाली प्लानिंग में मशगूल हैं। बंदे के इतने स्पॉट विज़िट प्लांड है कि मुझे डाउट हो रहा है, मेरी हवस प्यासी ना रह जाए। अपनी रंगीली बातों में ये हवाई सन्नाटा बोरियत भरने लगा था। हम दोनों की आँख लगी ही थी कि वही बिसरे ख़याल से झटके में नींद खुली। मेरे जीवन में सब कुछ इतना बेहेतरीन कैसे चल सकता है? आने वाली ख़ुशी का ख़याल भी मुझे ख़ुशियों के बीत जाने के ग़म में डुबो देती थी। फिर ये ख़ुशियाँ इतनी देर तक मेरी धड़कनों का हिस्सा हैं, कहीं?
पाइलट की माने तो डरने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन प्लेन जिस तरह से टर्ब्युलेन्स ले रहा है, ऐसा मेरी हज़ारों पुरानी फ़्लाइट्स में कभी नहीं हुआ था। ये एयर होस्टेस जितनी डरी हुई हैं, ये नजारा भी नया है। प्लेन नीचे जा जा के थम रहा है। अब पाइलट भी घबराया हुआ है, किसी नज़दीकी अड्डे पर लैंड होने कि बात कह रहा है। इमर्जन्सी प्रोशिजर शुरू हो गया है। मेरी आँखें बंद हो गयी हैं! बस यही ख़याल बना हुआ है, मेरा जीवन इतनी ख़ुशी क्यूँ दे रहा था। यही अंत है, शायद! अच्छा अंत है, कोई मलाल नहीं। इस भरपूर जीवन का शुक्रिया, इश्क़ का शुक्रिया और इस अपनेपन के अलावा क्या चाहिए। रह-रह के क्रेश होने के बाद का सीन मन में आ रहा है। जितनी फ़िल्में देखीं हैं, जिन फ़िल्मों में प्लेन क्रेश दिखाया गया हैं, वो सब सीन मन में झलक रहे हैं। एक मन ये भी कह रहा है कि ये सब सिर्फ़ डरा रहा है कुछ नहीं होगा। लेकिन फिर अपनी क़िस्मत पे एतबार आने लगता है। इतनी ख़ुशी के बाद जो भी होना है, वो इतना ही भयावह हो सकता है। सच में फटी हुई है, इस बंदे के लिए भी। इसने क्या बिगाड़ा है साला, मेरी लाइफ़ की लंका लगनी तय होती है, इसको क्यूँ मेरी नज़र लग गयी है। इसका चेहरा भयानक डरा हुआ है। मुझे इस पर तरस आ रहा है। काश इसके जीवन में मैं ना आती। मेरा नया घर, मेरे नए दरख़्त, मेरा बाग़ान। पुराने पौधे! आलते के रंग से सने मेरे पैर। दहलीज़, दूर तक बिखरे हुए चावल। उस पीढ़े में चढ़े हम दोनो! फ़्लाइट में लोगों की चीखें, मेरी शादी की शहनाई जैसे सुनाई दे रही हैं। पाइलट की आवाज़ जैसे पंडित मंत्र पढ़ रहा है। मेरे पति ने मेरी छाती में मेरे डॉक्युमेंट्स भर दिए। और अपनी छाती में भी। इस फटी के आलम में भी वो भविष्य देख पा रहा था, उसके लिए तैयारी कर रहा था। किसको मिलता है यार ऐसा हमसफ़र? क्या मैं इतनी बुरी हूँ? इतनी? मेरी वजह से मेरा जिगरी, मेरा पति भी मेरी क़िस्मत में लिपटा जा रहा है। प्लेन पूरी तेज़ी से नीचे जा रहा है। नीचे जंगल है! भयानक जंगल। मेरी जान मुझे लाइफ़ जैकेट पहना रहा है। अबे तू पहन पहले, उस चुड़ैल ने यही बोला था ना कि पहले अपनी सेफ़्टी करो। क्या चूतियापा है यार, मैं बस सोच रहीं हूँ, कुछ कर नहीं पा रही। शायद ये कोई सपना है। नहीं है यार! सपना तो था, अब नींद खुल गयी है। क्या है यार? कहाँ गिरेंगे? सीधे दफ़न? या पहले जलेंगे? आ गए!!! धमाका, तेज रोशनी, वो हँस रहा है। मेरी जान ने मुझे चूम लिया है। उसने मुझे रोने नहीं दिया। एक और धमाका। और तेज रोशनी, बहुत तेज रोशनी!
***
“जी! मेरी बात मानिए, मैं सुरभि हूँ! सुरभि अभय सिंह!”
“ज़ोर से बोल!”
“क्या?” पेट के पास बेहद दर्द हो रहा है। कुछ लोग मुझे कहीं ले जा रहे हैं। पता नहीं कौन लोग हैं? लाइफ़ सेविंग यूनिट तो नहीं लग रही। कुछ लोग हैं। जितना समझ आ रहा है, मेरा चेहरा खून से सना हुआ है। आस-पास अफ़रा-तफ़री है। मैं ने उन लोगों को फिर पुकारा
“अभय कहाँ हैं? उसको ढूँढो। मेरा पति है वो।” मेरे मुँह से शायद खून निकल रहा है, मैं कुछ भी ठीक से बोल नहीं पा रही हूँ। उन लोगों को समझ नहीं आ रहा है। सब लोग मुझे लेटे रहने को बाधित कर रहे हैं। मुझे भी शायद नींद आ रही है। कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही। महसूस हो रहा है कि कोई ले जा रहा है। जैसे डोली में दुल्हन को ले जाते हैं। चारों लोग एक चाल में चल रहे हैं। मुझे अभय चाहिए अभी। कहाँ है वो? लेकिन मैं कुछ बोल नहीं पा रही। इतने ऊँचे-ऊँचे पेड़ हैं। मैं ने कभी नहीं देखे इतने ऊँचे पेड़। सब कुछ लाल दिख रहा है। मेरे शादी के जोड़े जैसा लाल, सुर्ख़ लाल। मैं ने फिर आँखें बंद कर ली।
***
बेहद ठंड लग रही है, आँखें खोलने की बिल्कुल ताक़त नहीं है। मेरे शरीर में कोई कपड़ा नहीं है। और मैं ज़मीन में लेटी हूँ। ज़मीन भी गीली है, कंकड़ और रेत में सनी है। सुर्ख़ अंधेरा है। कुछ लोग बाहर बैठे हैं शायद। पेट में अभी भी दर्द हो रहा है। छूने में कहीं कोई चोट मालूम नहीं पड़ रही है, लेकिन, टाँगो के बीच का दर्द कुछ वैसा ही है, जैसे मैं नोचीं गयी हूँ। हवस! शायद हवस का शिकार हो गयी हूँ। चीखने का मन कर रहा है। लेकिन बाहर की आवाज़ें मुझे फिर नोचने लगेंगी इस डर से मरी हुई पड़ी हूँ। हनीमून! हनी है नहीं, मून अब होगा नहीं। हवस रह गयी। बस…
“साली बहुत करारी है।” बाहर से आवाज़ सुनाई दे रही है।
“तू जहाज़ तक गया था क्या?” किसी दूसरे की आवाज़ आयी।
“वहाँ क्या जाना साला। इतना माल यहीं मिल गया। वहाँ तो सब जल गया होगा। और फिर कौन पड़े हिसाब किताब में।” किसी और ने जवाब दिया।
“जो लोग गए थे उनको पुलिस वालों ने बैठा लिया है, हिसाब किताब हो रहा है सालों से” किसी और ने कहा “वहाँ तो सब बयान बाज़ी हो रही है, सब के सब साले अलग बता रहें हैं, चूतिए।”
“शायद ही कोई बचा होगा?”
“जितना ज़ोर से धमाका और आग फैली थी, शायद ही बचा होगा।”
“ये सामान, और ये लोग जो इधर फेंका गए, ये कैसे हुआ होगा?”
“अरे पेड़ में अटक गया था जहाज़, घसिट रहा था पेड़ों के ऊपर ही, वो तो आधा टूट के फेंकाया है, आगे। तब तो इतना सारा सामान, सूटकेस यहाँ ही फेंका गया था ना बे।”
“कितना जंगल जल गया है साला।”
“ये साली गरम माल कैसे मिली बे?” ये ही सुनने के लिए बेताब थी मैं
“अरे साली मरी पड़ी थी। कान की बाली खींची तो कराह उठी, हमने सोचा डबल मुनाफ़ा है, उठा ले चलो साली को, मर गयी तो फेंक देंगे कहीं। वैसे भी इतनी अंग्रेज़ी माल साली फिलम में ही देखी थी, आज तक। आज चख लिए हैं भाई। बहुत करारी है साली” ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ें।
कभी जंगल देखा नहीं, प्लेन से कभी नीचे देखना हुआ तो यही सोचती थी कि यहाँ कौन रहता होगा भला। आज पता चल गया, इंसान तो नहीं रहते।
मैं उनकी बातें सुन रहीं थी, ठंड नहीं लग रही थी अब, रेत और कंकड़ भी नहीं चुभ रहे थे। ज़मीन गीली भी नहीं लग रही थी। पेट में दर्द भी था, याद नहीं, टाँगो के बीच कुछ है, जिससे दुनिया में ये हरामी पैदा होते आयें हैं, बस वहीं दर्द हो रहा था। इस बार मैं ने आँखें बंद कर ली, लेकिन अब डर नहीं लग रहा है। ज़िंदा बची हूँ तो सिर्फ़ इन हरामियों की हवस बन के तो नहीं मरूँगी अब। जितना मरना था उतना मर चुकी हूँ।
***
सन्नाटा होते ही समझ आ गया कि कुछ लोग चले गए हैं, और कुछ लोग यहीं बाहर पड़े हैं। सूरज निकल आया है, लेकिन ये हरामी तो रात भर की अय्याशी के बाद सोए हैं, कहाँ उठने वाले। मैं ने फिर भी एहतियादतन, सब कुछ सन्नाटे में ही किया। ढेर सारे ट्रैवल बैग पड़े थे। भागने के हिसाब से जींस और शर्ट पहन लिया। जाँघ में चोट लगी थी, हैरान हूँ और कहीं चोट नहीं है। सर में घाव तो है, लेकिन कितना और कैसा ये देखने का समय नहीं है। होश में हूँ तो ठीक ही है सब। कान नोचें हैं सालों ने। दुःख रहा है। जैकेट डाला, पास में एक कुल्हाड़ी पड़ी थी, ये कोई झोपड़ी है। जंगल में जो झोपड़ी बने होते हैं वैसे ही। कुल्हाड़ी उठा ली मैं ने। मेरे शरीर में जो कुछ भी था, सालों ने नोच लिया था। मेरे कपड़े कहाँ हैं, ये भी नहीं पता चल रहा। दरवाजा जैसा तो कुछ था नहीं, बोरे से दहलीज़ ढकी हुई थी। बाहर निकली तो देखा एक ही आदमी है। सोया हुआ है, धुत्त नशे में। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी थी। जीने की ना इच्छा बची थी, और ना मौत कर डर रह गया था। इससे भयानक अब क्या होगा? ग़ुस्सा उबल गया और मैं ने कुल्हाड़ी ठीक उसके भेजे में दे मारी। साला चीख भी नहीं पाया। फिर गर्दन पे दे मारी। फिर कितनी और मारी याद नहीं। उसके जेब में बहुत रुपया भरा था। सब ले लिया। बहुत ढूँढा लेकिन कोई मोबाइल फ़ोन नहीं मिला आस-पास। देखने से तो आदमी देसी ही लग रहा था। प्लेन शायद इंडिया में ही क्रेश हुआ है, लेकिन कहाँ? ये नहीं पता?
क्या ख़बर थी किसी दिन जीओग्राफ़ी की क्लास की इतनी ज़रूरत पड़ेगी? किस तरफ़ जाऊँ? कहाँ जाऊँ? जाऊँ की ख़ुद को मार डालूँ? क्या करूँ? चारों तरफ़ जंगल। यही समझ आया कि पहाड़ की तरफ़ ज़ाया जाए, ऊँचाई से कुछ तो दिखाई देगा। जहाँ प्लेन क्रैश हुआ होगा, वहाँ डिज़ास्टर मैनेजमेंट टीम तो होगी ही। कुल्हाड़ी साथ ही रख ली। शायद कहीं से धुआँ आता दिखेगा, उसी तरफ़ चलना है। ये साले हरामी भी उसी तरफ़ आएँगे मुझे ढूँढने।
काफ़ी ऊपर तक चढ़ने के बाद भी, कहीं किसी तरफ़ कोई धुआँ नहीं दिखा। यहाँ इस जंगल में मोटरसाइकल भी शायद ही चलती होगी। जाने क्या हिम्मत थी, ना भूख, न कमजोरी, पिरीयड्ज़ के टाइम का दर्द भी बर्दाश्त नहीं होता था। सिक लीव लगा देती थी। आज जैसे कोई दर्द ही नहीं हो रहा है, न कोई दुःख है। मैं ने एक हत्या की है, और भी करनी पड़ेगी। ये सोच कर ही कुल्हाड़ी हाथ में लायी हूँ। पूरा दिन चलते-चलते दूर एक सड़क दिखी। चलने का इतना तजुर्बा तो हो ही गया था कि सड़क तक पहुँचने में रात हो जाएगी। और रात में, ये जो लोग मुझे पागलों की तरह ढूँढ रहे होंगे, ये भी सड़क की तरफ़ ही आएँगे। और सड़क में भी जो मिलेगा वो भी भेड़िया ही होगा। इतना बड़ा जंगल है, मेरे लिए भी तो कुछ होगा ही। रात के अंधेरे में तो कुछ दिखेगा नहीं, चलना फ़िज़ूल होगा। ऊपर से पकड़े जाने का ख़तरा है ही। अभी कहीं छुप के आराम करना सही रहेगा, भोर में मुस्तैदी ज़्यादा रहेगी। ज़मीन ख़तरे से ख़ाली नहीं थी सो पेड़ों की ही उम्मीद बची थी। एक मोटे बरगद के पेड़ में चढ़ना आसान लगा, थोड़ी बहुत खरोचें आयीं और चढ़ गयी। भूख, प्यास और बदन दर्द अब एहसास हो रहा था। लेकिन रात जाग के काटनी है। पेड़ से नीचे गिरने की सम्भावना कम है, तीन डालों के बीच बैठने की जगह अच्छी बन गयी है। अगर कोई साँप या कीड़ा नहीं आता है, तो इस जगह पे रात कट जाएगी। वो हरामी मुझे ढूँढ ज़रूर रहे होंगे, हालाँकि डरे भी होंगे। उस एक लाश का हिसाब तो देना होगा ना, सालों को।
रात का अंधेरा और रात कटने का इंतज़ार, पुराने घाव भी उकेरने लगता है। मेरे तो घाव भी उतने ही नए थे जितनी मेरे हाथों की मेहंदी। क्या ख़ूब सजी है, मेहंदी है कि खून का रंग या उजड़ी माँग की राख। किससे लिपट के रो लूँ? लेकिन क्यूँ रो लूँ? मरना था, मर चुकी हूँ। जीना था, जी चुकी हूँ, मोहब्बत चाहिए थी? मिल गयी। नौकरी, पैसा, ऐशों आराम सब जी लिया। फिर क्यूँ रोना? अब ज़िंदा बची किस लिए हूँ? हवस का शिकार बनने के लिए? इस जंगल में मेरी सिसकी भी मिलों सुनाई देगी। इंसान की आवाज़, मुर्दे की गंध की तरह भेड़ियों तक पहुँच जाएगी। मुझे इस लिए नहीं रोना है। सिर्फ़ रात काटनी है। भोर मेरी होने वाली है। सड़क के किनारे छुप के चलना है, और तब तक चलना है, जब तक, जब तक ज़िंदा बचने की कोई उम्मीद ना मिले।
***
एक छोटा सा कोई क़स्बा आया है, पेट्रोल पम्प है। जैसे ही पेट्रोल पम्प एकांत हुआ, मैं वहाँ पहुँच गयी। पहले भाग के बाथरूम गयी। उस गंदे से बाथरूम में जीभर के पानी पिया। वहाँ काम करने वाले लोग मेरे पहनावे, खून के धब्बों और भयंकर थके हुए शरीर को देख चुके होंगे। अगर कहीं सीसीटीवी कैमरा होगा, तो मैं रिकॉर्ड में भी आयी होऊँगी। जब तक कुछ समझ में नहीं आता है, मैं ने बाथरूम में रहना ही सही समझा। चेहरे को धोया, कपड़ों को कुछ ठीक किया। इतने खून के धब्बे नहीं थे। ग़नीमत ये कि जैकेट को उल्टा कर के भी पहना जा सकता है। एक चान्स है कि बाहर निकलते ही कोई झूठी कहानी पे भरोसा कर ले।
बाहर आकर मैं ने पेट्रोल पम्प के मालिक को पास में ऐक्सिडेंट होने की कहानी सुनाई।
“क्या नाम बताया आपने?”
“जी मेरा नाम सुरभि है। सुरभि अभय सिंह। पति का नाम अभय सिंह।”
“कहाँ पे हुआ है? ऐक्सिडेंट?”
“पीछे पहाड़ी के उस तरफ़। मैं सड़क पे अकेले नहीं चलना चाहती थी, कोई भी और नुक़सान से बचने के लिए, छुपते हुए यहाँ आयी हूँ”
“मैं कुछ समझा नहीं। छुपते हुए क्यूँ?”
“अकेली लड़की, जंगल में कौन मदद करता, किसकी बुरी नज़र होती, क्या पता? गाड़ी खाई में गिर गयी, ड्राइवर के साथ। मैं पहले कूद गयी समय रहते। कौन मानेगा मेरी ये बात? सब मोबाइल फोन वग़ैरा गाड़ी में ही चले गए”
“कोई आई डी कार्ड? आधार, लाइसेन्स? कुछ भी?”
“भई सुनो, या तो पुलिस वाले को बुला दो, या एक फ़ोन कर लेने दो। या मैं यहाँ से जाती हूँ, कुछ और सहारा होगा?”
“ठीक है, पुलिस को फ़ोन करता हूँ!”
“थाना हो तभी, किसी चौकी को नहीं। नहीं तो रात भर चौकी में ही मेरा मुजरा हो जाएगा।” मैं ने बोलने में सारे लिहाज़ तोड़ दिए थे।
“यहाँ तो चौकी ही है, थाने फ़ोन लगाया तो भी चौकी वाले ही आएँगे।”
“तो फिर रहने दो, कोई सरकारी बस रुकवा दो, मैं उसमें बैठ कर थाने तक ख़ुद जाऊँगी”
“आप कहें तो मैं छोड़ देता हूँ।” उसने मदद पेश की, लेकिन अब मुझे ईश्वर पर भी रत्ती का भरोसा नहीं था।
“अगर, कर सकें तो सरकारी बस, कोई रोडवेज़ रुकवा दीजिए। मेहरबानी।”
***
कोई पुलिस थाना नहीं जाना, जब तक ये समझ नहीं आता है कि मैं कहाँ हूँ और कैसे मुझे दिल्ली पहुँचना है, किसी पर भरोसा नहीं करना है। किसी की मदद नहीं लेनी है। इतने बड़े प्लेन क्रैश से बच गयी हूँ। वहाँ से इतनी दूर कैसे आयी? मेरी शिनाख्त क्या है? कुछ नहीं पता। कौन मुझे फिर ग़ायब कर के बाज़ार में बेच देगा पता भी नहीं चलेगा। बस, एक ही नारा है, चलो दिल्ली। हा हा, ग़ज़ब। चलो दिल्ली। न नेता जी पहुँच पाए थे, न मेरी कोई उम्मीद है। लेकिन अब होने को क्या बचा है? बस में बैठे-बैठे चैन की नींद आयी, लेकिन भूख अभी भी जान ले रही थी। ये बस बैतूल जा रही थी। मैं ने वहीं तक का टिकट ले लिया। बीच में ये कहीं रुकी तो जो कुछ भी मिल गया खा लिया। इतनी बेरहमी से खाया की देखने वाले सहम गए होंगे। चाय पी, और बस में बैठ कर फिर सो गयी। पता नहीं ये बैतूल क्या जगह है। कोई जानी पहचानी जगह से कितना दूर है, लेकिन किसी से कुछ पूछने का मतलब था, जुर्म को दावत देना। पापा के अलावा किसी का फ़ोन नम्बर याद नहीं है, कोई ज़माना था किसी का फ़ोन नम्बर याद करना। घर का पुराना लैंडलाइन नम्बर याद है, पापा का नंबर याद है ऐसा बोलकर पापा को ख़ूब पटाया है लेकिन अभि कुछ याद नहीं आ रहा। और रिस्क तो रति भर भी नहीं लेना है, सिर्फ़ एक ही इंसान पे भरोसा है। ख़ुद पर! किसी से फ़ोन माँग के घर काल कर लेना भी डरावना है। बैतूल पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी थी। उतरते ही एक ऑटो वाले को किसी होटेल ले जाने को कहा। कोई महँगा होटेल, जहाँ लड़की को रुकने में दिक़्क़त ना हो।
“एक्स्ट्रा पैसे दूँगी।”
“जी मैडम, एक होटेल है, पुलिस थाने के पास है, कोई दिक़्क़त नहीं होगी।”
“बढ़िया, मैं भी पुलिस वाली ही हूँ, ख़ूफ़िया विभाग।”
फिर वो चलता रहा बड़ी देर, इतना बड़ा शहर नहीं था, जितनी देर वो चलता रहा। मैं तैयार बैठी थी कि ये हरकत करे और मैं इसकी भी रसीद काट दूँ। एक होटेल आया, शहर के हिसाब से ठीक ही था। आस-पास कोई थाना तो दिखा नहीं, लेकिन अब उसकी ज़रूरत भी नहीं है। रात काटनी है, वो भी ज़िंदा रहकर। इसके लिए क्या करना होगा वो किया जाएगा।
“जी मैडम नाम?”
“सुरभि! सुरभि अभय सिंह। 27,” अभय का ज़िक्र आते ही आँखें धोका देने लगती हैं।
“कोई आई डी है मैडम? कोई आधार कार्ड वग़ैरह?”
“सब है। अभी नहीं है। पैसे हैं, लगे तो बोलो नहीं तो दूसरी होटेल है।”
“नहीं मैडम। बिना आधार के तो मुश्किल है।”
मैं ने उसे घूर के देखा, ख़याल में ख़ुद को कुल्हाड़ी चलाते हुए महसूस भी किया। और फिर बाहर जाने लगी। लेकिन मुझे पता था, जो फ़ितूर मैं ने रिक्शे वाले के अंदर बोया है, वो फलेगा। रिक्शे वाले ने खुसर-फुसर में उसे समझा दिया कि मैं ख़ूफ़िया पुलिस हूँ। और आज रात का बंदोबस्त भी हो गया।
दर्द का पता नहाते वक्त चलता है। होटेल के कमरे को पूरी तरह से बंद किया। होटेल वाले से ही, सेनिटरी पैड, डेटोल, दर्द की दवा मंगाई, खाना मँगवाया। पुलिस वाली हूँ, सुन के उसने एक भी सवाल नहीं पूछे। जाँघ के घाव को सेनेटरी पैड से धोया, डेटोल लगाया और तकिए के कवर से पट्टी बाँधी। ये रात जितनी ख़तरे से दूर थी, उतनी दर्दनाक। रात भर अभय को याद कर के रोती रही। होटेल में बिना शक के रात गुज़ारनी थी। बिना किसी की मदद के घर तक पहुँचना था। किसी पर भरोसा किए बिना।
सुबह देर तक सोती रही, दर्द की कई टेबलेट खा ली थी। आज शीशे में ख़ुद को देखने की हिम्मत नहीं हुई। किसी ज़माने में ख़ुद को आईने में निहारना ही मेरी तनहाई का सुख था। ख़ूब फूट के रोयी। बिना आवाज़ के रोने का हुनर सीख लिया था। दिनभर बैतूल में घूमती रही, ये पता करने के लिए कि आगे जाना कहाँ है? दिन में कई बार, भोपाल का ज़िक्र सुना। भोपाल शब्द पहले भी सुन रखा था। जिस दुकान से कपड़े ख़रीदे वहाँ से पता चला कि भोपाल की ट्रेन लगातार मिलती रहती है। कपड़े शॉप में ही बदले और फिर नर्सिंग होम जा के पट्टी कराई, इन्फ़ेक्शन फैल रहा था। पूरी जाँघ नीली पड़ गयी थी। नर्सिंग होम ने भी आधार कार्ड माँगा। इस निराधार ज़िंदगी में सबको आधार ही चाहिए। मेरे पास कोई आधार नहीं है। आधार था, अब नहीं है।
ट्रेन टिकट बनाते वक्त भी ऑफ़िसर ने आधार कार्ड का ज़िक्र किया था। ट्रेन में टीसी ने इस बात की रिश्वत ली की मेरे पास कोई आधार कार्ड या कोई आई डी कार्ड नहीं था।
भोपाल आते ही मैं समझ चुकी थी, मेरी हालत बिगड़ चुकी है। बदन बुखार से तप रहा था। जाँघ की सूजन जींस के ऊपर से समझ आ रही थी। कान की चोट में भी इन्फ़ेक्शन होने लगा था। भोपाल शहर में एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए पहुँची। हॉस्पिटल को देख के लगा कोई बड़ा शहर है, इस लिए ये तय किया कि अब घर फ़ोन करूँगी और कोई न कोई मुझे लेने यहीं आ जाएगा।
अस्पताल में मुझसे इंसुरेंस के बारे में पूछा गया। कैशलेस इंसुरेंस की डिटेल याद नहीं थी। किसी तरह इंसुरेंस कम्पनी, नाम, बर्थ डेट, बताया। ये सब कभी इस तरह काम आएगा सोचा नहीं था। चलो, इतने भी पैसे नहीं थे कि इतना इलाज हो पाए। इंसुरेंस है, लाइफ़ का भी है। लाइफ़ है, ये नहीं पता था?
अब लाइफ़ ख़त्म हो चुकी है, हो तो इंसुरेंस का क्या भरोसा करो। थोड़ी कम्प्यूटर वाली मशक़्क़त के बाद क्लर्क को तो पता चला कि इंसुरेंस क्लोज़ हो चुका है। मैं इंसुरेंस कम्पनी के रिकॉर्ड में मर चुकी हूँ, मेरे परिवार वालों ने मेरा इंसुरेंस क्लेम के लिए भेज दिया है।
क्लर्क ने कहा कि शायद कोई ग़लत एंट्री होगी डेटाबेस में। ये सब सही है कि नहीं इसकी पुष्टि के लिए क्लर्क ने मेरा आधार कार्ड माँगा। मैं ने मना कर दिया, मैं निराधार हूँ। मेरा कोई आधार नहीं बचा।
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