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भारत की प्रकृति

हिमालय और हिंद महासागर के बीच अप्राकृतिक राज्य बन ही नहीं सकता।

आज का भारत को हजारों साल से लगातार आते हुए आगंतुकों ने इसे अपना घर बना के इसको बुना है। उत्तर पश्चिम में जहां मरुस्थल और बर्फ़ीली पहाड़ियाँ मिलती हैं, वहाँ योद्धा रहते हैं। क्योंकि हमले वहीं से होते हैं। उत्तर पश्चिम में व्यापारी रहते हैं क्यों की निर्यात समुद्री रास्तों से ही संभव है। मध्य में किसान, विचारक और विधार्थी रहते हैं। इन सब लोगों मे श्रमिक वर्ग बराबर बँटा हुआ है। श्रमिक वर्ग अब मुफ्त में सेवा नहीं करना चाहता। मुफ्त में जीवन का लुत्फ़ उठाने वालों को मुफ्त में काम करने वाले श्रमिक चाहिए।

शिक्षा के प्रसार से ये लड़ाई अब बहुत धारदार हो रही है। बस इसी लड़ाई को भटकाने के लिए एक अप्राकृतिक भारत को जनमानस में थोपा जा रहा है। ऐसी कोशिश मुफ्तखोर जमात अक्सर करते रहते हैं। इनको हराना आसान है, इनको तवज्जो देना बंद कर दो। स्वभाविक भारत हमेशा से यही करता आया है। इसलिए, रोम मिश्र यूनान सब मिट गए जहाँ से, बाँकी मगर है अबतक हिंदुस्तान हमारा।

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