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मानव चेतना का अंतिम लक्ष्य क्या है?

दिवानगी की हद तक किताबें पसंद हैं। जब कोई किताब खत्म होती है तो देर तक मन में सन्नाटा भर जाता है। जैसे किसी अपने से बिछड़ने के तुरंत बाद सन्नाटा छाया रहता है। इस महीने दो किताब लगातार खत्म हुई। एक किताब जीन एडिटिंग पर आधारित थी और दूसरी मस्तिष्क और चेतना पर।

एक जीवन के मौलिक कण की संरचना और हाल ही में विकसित हुई जीन एडिटिंग तकनीकी से मानव शरीर को कई लाख गुणा और शक्तिशाली बनाने की संभावना और खतरों पर विमर्श कर रही थी दूसरा ज्ञान और चेतना के अंतिमातीम लक्ष्यों को जानने की कोशिश कर रही थी।

जैसे, हाड़ मांश के इस शरीर का अंतिम लक्ष्य केवल इतना ही है कि अपने जींस की कॉपीज बनाता रहे। शरीर का लक्ष्य है खुश रहना, स्वस्थ रहना एवं प्रजनन करना। वहीं चेतना का लक्ष्य है ब्रामहंड् के रहस्यों की खोज कर उस ज्ञान को जोहते जाना। शरीर की प्रकृति ही यही है कि इसकी मृत्यु हो। यदि मृत्यु नहीं होगी तो इसके प्रजनन से उत्सर्जित और बेहतर जीन के लिए आवश्यक संसाधनों पर पुराने जींस का ही स्वामित्व रहेगा और जींस के खुद से निरंतर विकसित होने का क्रम रुक जायेगा। इसलिए जींस खुद तय करते हैं की शरीर प्रजनन के बाद समाप्त हो जाएं।

मस्तिष्क हालाँकि जींस के इस स्वप्रेम के विरोध में खुद को विकिसित कर रहा है। मस्तिष्क उस चेतना को विकसित कर रही है जिससे असीम ज्ञानकोश का भंडारण होता रहे। मस्तिष्क यह कर पाने मे 3000 लाख सालों बाद सफल हो पाया, जब इसने मूल मस्तिष्क के ऊपर नियोकॉर्टेक्स नामक नया मस्तिष्क विकसित कर पाया।

21वीं सदी के तीसरे दशक में, महामारी बीतने के दौरान इंसान अपने जींस को एडिट कर सकता है और अपने मस्तिष्क का विद्युत रूपांतरण भी कर सकता है।

आगे हम किस दिशा में जाना चाहते हैं? इस सवाल के दो राहे पर मानव जाती फिर आ खड़ी हुई है। हमें अपने जैसे जींस को विकसित करते हुए जीवन को कालजयी बनाना है? या अपने ज्ञान कोश में नई शिलाओं को जोहना है? हमें अपने चेतना का विस्तार करना है? या अपनी जाती सेपियंस को जैसे तैसे जिंदा रखना है? हमसे पहले सोरुस् प्रजाति (डाइनसोर्स) 6000 लाख सालों तक धरती में जीवित रहे। इस लिहाज से सेपियंस (हम) का इतिहास लगभग आधा भी नहीं है। लगभग तय है की हमारा हश्र भी सोरुस् प्रजातियों जैसा ही होगा। तो क्या? इतना संवर्धित ज्ञान? व्यर्थ हो जायेगा? अगली प्रजाति फिर शून्य से शुरू होगी?

इस सवाल के साथ जीना कितना कठिन, दुर्लभ और रोमांचित है।

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